पौराणिक मान्यता है कि पवनपुत्र हनुमान जी (Lord Hanuman) अजर-अमर हैं। हनुमान जी पृथ्वी पर ही वास करते हैं। बताते हैं कि जब हनुमान जी लंका युद्ध (Lanka Yudh) के समय अपने प्रभु श्रीराम (Lord Sri Ram) की सेवा के लिए त्रेतायुग में उपस्थित थे। उस समय जब श्रीराम ने जल समाधि ली, तो हनुमान जी को पृथ्वी पर ही रुकने का आदेश दिया था। तबसे माना माना जाता है कि हनुमान जी का पृथ्वी पर ही वास है। लेकिन जब द्वापर युग में हनुमान जी को पता लगा कि उनके प्रभु श्रीराम, श्री कृष्ण अवतार में दोबारा पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं, तो वे अत्यंत प्रसन्न हुए। कहा जाता है कि महाभारत (Mahabharat) के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण (lord sri krishna) की इच्छा के अनुरूप बजरंगबली अर्जुन (Arjun) के रथ की ध्वजा पर विराजमान थे। इससे जुड़ा एक प्रसंग आनंद रामायण में मिलता है, जिसमें हनुमान जी अर्जुन के घमंड को तोड़ते हैं।
ऐसे चूर-चूर किया अर्जुन का घमंड
कहावत के मुताबिक, एक बार हनुमान जी और अर्जुन की मुलाकात रामेश्वरम में हुई। इस दौरान दोनों के बीच लंका युद्ध पर चर्चा हुई। उस समय अर्जुन खुद को दुनिया का सबसे शक्तिशाली धनुर्धर मानते थे। अर्जुन ने बातचीत में हनुमान जी से कहा कि आपके प्रभु श्रीराम ने लंका युद्ध के दौरान वानर सेना को पार लेे जाने के लिए वाणों से ही सेतु निर्माण क्यों नहीं किया। इस हनुमान जी ने कहा कि वाणों से बना पुल वानर सेना का भार सहन नहीं कर पाता। तो घमंड में चूर अर्जुन ने कहा कि वे तो बाणों से ऐसा पुल बना सकते हैं, जो कभी टूटता ही नहीं।
अर्जुन ने हनुमान जी से कहा कि वह अभी बाणों से ऐसा पुल तैयार करके दिखाते हैं, वह आपका भार सहन कर लेगा। उस समय बजरंगबली सामान्य रूप में थे। अभियान में चूर अर्जुन ने अपने बाणों से तालाब पर एक सेतु बना दिया और हनुमान जी को चुनौती दी। अर्जुन के बनाए सेतु को देखकर हनुमान जी ने उनके सामने एक शर्त रखी, अगर सेतु उनका वजन सहन कर लेगा, तो वे अग्नि में प्रवेश कर जाएंगे और यदि यह टूट गया तो तुमको अग्नि में प्रवेश करना होगा। अर्जुन ने शर्त स्वीकार कर ली।
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हनुमान जी ने अपना विशाल रूप धारण किया और जैसे ही पहला पग उस सेतु पर रखा तो सेतु डगमाने लगा। दूसरा पैर रखते हुए सेतु चरमराने लगा। उस पुल की हालात देखकर अर्जुन का सिर घमंड से नीचे हो गया। हनुमान जी ने जैसे ही तीसरा पग रखा, तो वह तालाब खून से लाल हो गया।
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यह देखकर हनुमान जी सेतु से नीचे आ गए और अर्जुन को अग्नि प्रज्वलित करने को कहा। अग्नि प्रज्वलित होते ही हनुमान जी उसमें प्रवेश करने वाले थे, तभी भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हुए और बजरंगबली को ऐसा करने से रोका। उन्होंने कहा कि हे भक्त श्रेष्ठ! आपके पहले ही पग के रखते यह सेतु टूट गया होता, अगर मैं कछुआ बनकर अपनी पीठ पर आपका भार सहन नहीं करता। तीसरा पग रखते ही मेरी पीठ से खून निकलने लगा।
यह सुनकर हनुमान जी दुखी हो गए और उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। उन्होंने कहा कि वे अपराधी हैं, उनके कारण उनके प्रभु को दुख पहुंचा है। इस पर श्रीकृष्ण बोले कि यह सब उनकी ही इच्छा से हुआ है। उन्होंने हनुमान जी से कहा कि आप महाभारत युद्ध में अर्जुन की रथ पर लगी ध्वजा पर विराजमान रहें। जब महाभारत का युद्ध हुआ तो अर्जुन की रथ पर हनुमान जी शिखर पर लगे ध्वज पर विराजमान हो गए।
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