इस दिन भूलकर भी न करें चंद्र के दर्शन,वरना लगेगा ये पाप - BOLLYWOOD NEWS

Monday, August 17, 2020

इस दिन भूलकर भी न करें चंद्र के दर्शन,वरना लगेगा ये पाप

प्रथम पूज्य श्री गणेश के प्रमुख त्योहार गणेश चतुर्थी की तैयारियां शुरू हो गई हैं। इस साल 2020 में 22 अगस्त को भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी। इसे विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है। इस बार 10 दिनों तक गणपति की आराधना करने के पश्चात 01 सितंबर दिन मंगलवार को गणपति बप्पा को विसर्जित कर दिया जाएगा। उस दिन अनंत चतुर्दशी है।

गणेश चतुर्थी को लेकर कई तरह की मान्यता हैं, जिनमें एक यह भी है कि गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा का दर्शन करने से पाप लगता है। इस मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति उस दिन चंद्रमा के दर्शन कर लेता है उस पर झूठा आरोप लगता है। जानिए इसके पीछे की कहानी और यदि गलती से चंद्रमा के दर्शन हो जाए तो क्या है उपाय...

गणेशजी और चंद्रमा की कथा...
कथा के मुताबिक जब गणेशजी को गज मुख लगाया गया और उन्होंने पृथ्वी की सबसे पहले परिक्रमा की, तो प्रथम पूज्य देव कहलाए। ऐसे में सभी देवताओं ने उनकी वंदना की, लेकिन उस समय चंद्रमा मंद-मंद मुस्कुराते रहे।

shri_ganesh

दरअसल, माना जाता है कि चंद्रमा को तब अपने सौंदर्य पर घमंड हो गया था। बाकी देवताओं की तरह चंद्रमा ने गणेशजी की वंदना नहीं की, तो गणेशजी को गुस्सा आ गया। गणेश जी ने गुस्से में आकर चंद्रमा को श्राप दे दिया कि आज से तुम काले हो जाओगे। श्राप सुनते ही चंद्रमा को समझ आ गया कि उसने बड़ी भूल हो गई है।

ऐसे में चंद्रमा ने माफी मांगी तो गणेशजी ने कहा कि जैसे-जैसे सूर्य की कारणें उन पर पड़ेगा, चमक लौट आएगी। लेकिन भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी का यह दिन आपको दंड की हमेशा याद दिलाएगा। जो कोई व्यक्ति इस दिन चंद्रमा का दर्शन करेगा, उस पर झूठा आरोप लगेगा।

 

MUST READ : श्री गणेश चतुर्थी 2020

Ganesh Utsav 2020: Divine mantras of lord shri ganesh

यदि आपने गलती से भी चतुर्थी का चंद्र देख लिया, तो उपाय के तौर पर पढ़ें यह मंत्र और कथा...

श्री गणेश के इस श्राप के चलते ही चतुर्थी तिथि शुरू होने से लेकर खत्म होने तक चन्द्रमा का दर्शन नहीं करने चाहिए। लेकिन, यदि भूल से गणेश चतुर्थी के दिन चन्द्रमा के दर्शन हो जाएं तो मिथ्या दोष से बचाव के लिए नीचे लिखे मंत्र का जाप करना चाहिए और बताई गई कथा का श्रवण करना चाहिए ...

'सिंह: प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हत:।
सुकुमारक मारोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकर:"

स्यमन्तक मणि की प्रामाणिक कथा...

एक बार नंदकिशोर ने सनतकुमारों से कहा कि चौथ की चंद्रमा के दर्शन करने से श्रीकृष्ण पर जो लांछन लगा था, वह सिद्धिविनायक व्रत करने से ही दूर हुआ था। ऐसा सुनकर सनतकुमारों को आश्चर्य हुआ।

उन्होंने पूर्णब्रह्म श्रीकृष्ण को कलंक लगने की कथा पूछी तो नंदकिशोर ने बताया- एक बार जरासंध के भय से श्रीकृष्ण समुद्र के मध्य नगरी बसाकर रहने लगे। इसी नगरी का नाम आजकल द्वारिकापुरी है। द्वारिकापुरी में निवास करने वाले सत्राजित यादव ने सूर्यनारायण की आराधना की। तब भगवान सूर्य ने उसे नित्य आठ भार सोना देने वाली स्यमन्तक नामक मणि अपने गले से उतारकर दे दी।

MUST READ : श्री कृष्ण का आशीर्वाद

How to get blessings of Lord Krishna

मणि पाकर सत्राजित यादव जब समाज में गया तो श्रीकृष्ण ने उस मणि को प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की। सत्राजित ने वह मणि श्रीकृष्ण को न देकर अपने भाई प्रसेनजित को दे दी। एक दिन प्रसेनजित घोड़े पर चढ़कर शिकार के लिए गया। वहां एक शेर ने उसे मार डाला और मणि ले ली। रीछों का राजा जामवन्त उस सिंह को मारकर मणि लेकर गुफा में चला गया।

जब प्रसेनजित कई दिनों तक शिकार से न लौटा तो सत्राजित को बड़ा दुख हुआ। उसने सोचा, श्रीकृष्ण ने ही मणि प्राप्त करने के लिए उसका वध कर दिया होगा। अतः बिना किसी प्रकार की जानकारी जुटाए उसने प्रचार कर दिया कि श्रीकृष्ण ने प्रसेनजित को मारकर स्यमन्तक मणि छीन ली है।

इस लोक-निंदा के निवारण के लिए श्रीकृष्ण बहुत से लोगों के साथ प्रसेनजित को ढूंढने वन में गए। वहां पर प्रसेनजित को शेर द्वारा मार डालना और शेर को रीछ द्वारा मारने के चिह्न उन्हें मिल गए।
रीछ के पैरों की खोज करते-करते वे जामवन्त की गुफा पर पहुंचे और गुफा के भीतर चले गए। वहां उन्होंने देखा कि जामवन्त की पुत्री उस मणि से खेल रही है। श्रीकृष्ण को देखते ही जामवन्त युद्ध के लिए तैयार हो गया।

 

MUST READ : श्री गणेश का जन्मदिवस

https://www.patrika.com/festivals/ganesh-chaturthi-2020-date-22-august-saturday-6218455/

युद्ध छिड़ गया। गुफा के बाहर श्रीकृष्ण के साथियों ने उनकी सात दिन तक प्रतीक्षा की। फिर वे लोग उन्हें मर गया जानकर पश्चाताप करते हुए द्वारिकापुरी लौट गए। इधर इक्कीस दिन तक लगातार युद्ध करने पर भी जामवन्त श्रीकृष्ण को पराजित न कर सका। तब उसने सोचा, कहीं यह वह अवतार तो नहीं जिसके लिए मुझे रामचंद्रजी का वरदान मिला था। यह पुष्टि होने पर उसने अपनी कन्या का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया और मणि दहेज में दे दी।

श्रीकृष्ण जब मणि लेकर वापस आए तो सत्राजित अपने किए पर बहुत लज्जित हुआ। इस लज्जा से मुक्त होने के लिए उसने भी अपनी पुत्री का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया।

कुछ समय के बाद श्रीकृष्ण किसी काम से इंद्रप्रस्थ चले गए। तब अक्रूर तथा ऋतु वर्मा की राय से शतधन्वा यादव ने सत्राजित को मारकर मणि अपने कब्जे में ले ली। सत्राजित की मौत का समाचार जब श्रीकृष्ण को मिला तो वे तत्काल द्वारिका पहुंचे। वे शतधन्वा को मारकर मणि छीनने को तैयार हो गए।
इस कार्य में सहायता के लिए बलराम भी तैयार थे। यह जानकर शतधन्वा ने मणि अक्रूर को दे दी और स्वयं भाग निकला। श्रीकृष्ण ने उसका पीछा करके उसे मार तो डाला, पर मणि उन्हें नहीं मिल पाई।

MUST READ : श्री गणेश के मंदिर

https://www.patrika.com/mp-religion-spirituality/such-ancient-temples-where-lord-ganesha-is-present-6113703/

बलरामजी भी वहां पहुंचे। श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि मणि इसके पास नहीं है। बलरामजी को विश्वास न हुआ। वे अप्रसन्न होकर विदर्भ चले गए। श्रीकृष्ण के द्वारिका लौटने पर लोगों ने उनका भारी अपमान किया। तत्काल यह समाचार फैल गया कि स्यमन्तक मणि के लोभ में श्रीकृष्ण ने अपने भाई को भी त्याग दिया।
श्रीकृष्ण इस अकारण प्राप्त अपमान के शोक में डूबे थे कि सहसा वहां नारदजी आ गए। उन्होंने श्रीकृष्णजी को बताया- आपने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के चंद्रमा का दर्शन किया था। इसी कारण आपको इस तरह लांछित होना पड़ा है।

श्रीकृष्ण ने पूछा- चौथ के चंद्रमा को ऐसा क्या हो गया है जिसके कारण उसके दर्शनमात्र से मनुष्य कलंकित होता है? तब नारदजी बोले- एक बार ब्रह्माजी ने चतुर्थी के दिन गणेशजी का व्रत किया था। गणेशजी ने प्रकट होकर वर मांगने को कहा तो उन्होंने मांगा कि मुझे सृष्टि की रचना करने का मोह न हो।
गणेशजी ज्यों ही 'तथास्तु' कहकर चलने लगे, उनके विचित्र व्यक्तित्व को देखकर चंद्रमा ने उपहास किया। इस पर गणेशजी ने रुष्ट होकर चंद्रमा को शाप दिया कि आज से कोई तुम्हारा मुख नहीं देखना चाहेगा।

Ashtavinayak's last stop Mahaganapathi

शाप देकर गणेशजी अपने लोक चले गए और चंद्रमा मानसरोवर की कुमुदिनियों में जा छिपा। चंद्रमा के बिना प्राणियों को बड़ा कष्ट हुआ। उनके कष्ट को देखकर ब्रह्माजी की आज्ञा से सारे देवताओं के व्रत से प्रसन्न होकर गणेशजी ने वरदान दिया कि अब चंद्रमा शाप से मुक्त तो हो जाएगा, पर भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को जो भी चंद्रमा के दर्शन करेगा, उसे चोरी आदि का झूठा लांछन जरूर लगेगा। किंतु जो मनुष्य प्रत्येक द्वितीया को दर्शन करता रहेगा, वह इस लांछन से बच जाएगा। इस चतुर्थी को सिद्धिविनायक व्रत करने से सारे दोष छूट जाएंगे।
यह सुनकर देवता अपने-अपने स्थान को चले गए। इस प्रकार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चंद्रमा का दर्शन करने से आपको यह कलंक लगा है। तब श्रीकृष्ण ने कलंक से मुक्त होने के लिए यही व्रत किया था।

कुरुक्षेत्र के युद्ध में युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा- भगवन्! मनुष्य की मनोकामना सिद्धि का कौन-सा उपाय है? किस प्रकार मनुष्य धन, पुत्र, सौभाग्य तथा विजय प्राप्त कर सकता है?
यह सुनकर श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया- यदि तुम पार्वती पुत्र श्री गणेश का विधिपूर्वक पूजन करो तो निश्चय ही तुम्हें सब कुछ प्राप्त हो जाएगा। तब श्रीकृष्ण की आज्ञा से ही युधिष्ठिरजी ने गणेश चतुर्थी का व्रत करके महाभारत का युद्ध जीता था।



from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/3g3iU49

Pages