भगवान शिव पर चढ़ी पूजन सामग्री के विसर्जन का तरीका, जानें यहां - BOLLYWOOD NEWS

Saturday, July 25, 2020

भगवान शिव पर चढ़ी पूजन सामग्री के विसर्जन का तरीका, जानें यहां

सप्ताह के हर सोमवार के अलावा मुख्य रूप से शिवरात्रि व सम्पूर्ण श्रावण मास में शिव आराधना का विशेष महत्व माना गया है। वहीं मुख्य रुप से श्रावण मास में श्रद्धालु भगवान शिव का अभिषेक पूजा आदि कर अपना जीवन धन्य करते हैं। भगवान शिव की पूजा में अभिषेक, भस्म, बिल्वपत्र,पुष्प सहित कई तरह की पूजा सामग्रियों का विशेष महत्व होता है।

अधिकांश मंदिरों व घरों में प्रत्येक श्रावण सोमवार को भगवान चंद्रशेखर का विशेष श्रृंगार किया जाता है। इन दिनों अक्सर श्रद्धालु बिल्वपत्र से लक्ष्यार्चन इत्यादि भी करते हैं। भगवान शिव पर चढ़ाए गए सभी बिल्वपत्र और पुष्प शिवलिंग पर अर्पण किए जाने के उपरांत जब इन्हें विग्रह से उतार लिया जाता है, तब ये निर्माल्य बन जाते हैं।

How to immerse the worshiped material on Shiva

पंडित सुनील शर्मा के अनुसार अक्सर देखने में आता है कि सही जानकारी के अभाव में श्रद्धालु कभी कभी इन निर्माल्य को विसर्जन करते समय किसी नदी तट या ऐसी जगह रख देते हैं, जहां इनका अनादर होता है। जबकि हमारे शास्त्रों में किसी भी देवी-देवता के निर्माल्य का अपमान करना घोरतम पाप माना गया है।

शिव निर्माल्य को पैर से छू जाने के पाप के प्रायश्चितस्वरूप ही पुष्पदंत नामक गंधर्व ने इस महान पाप के प्रायश्चित के लिए महिम्न स्तोत्र की रचना कर क्षमा-याचना की थी।

अत: इस पवित्र श्रावण मास के अलावा जब कभी भगवान भोलेनाथ की पूजा करें, उसमें श्रद्धालुओं को शिव निर्माल्य का विशेष ध्यान रखना चाहिए। केवल निर्माल्य को किसी नदी तट या बाग-बगीचे में रख देने से अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं समझनी चाहिए।

जब तक यह सुनिश्चित न कर लें कि इस स्थान पर निर्माल्य का अनादर नहीं होगा, यानि ऐसे स्थानों पर निर्माल्य न रखें जहां इसके अपमान का रत्ति भर भी संदेह हो ।

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शिव निर्माल्य का विसर्जन...

पंडित शर्मा के अनुसार शिव निर्माल्य के विसर्जन का सर्वाधिक उत्तम प्रकार है कि निर्माल्य को किसी पवित्र स्थान या बगीचे में गड्ढा खोदकर भूमि में दबा दें। वैसे बहते जल में इस निर्माल्य को प्रवाहित किया जा सकता है, किंतु उसके लिए यह ध्यान रखें कि नदी का जल प्रदूषित न हो अर्थात निर्माल्य बहुत दिन पुराने न हों। शिव निर्माल्य का अपमान एक महान पाप है अत: इससे बचने के लिए केवल दो ही उपाय हैं- एक तो कम मात्रा में निर्माल्य का सृजन हो और दूसरा निर्माल्य का उत्तम रीति से विसर्जन।

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